“भरतपुर के टाइगर का बड़ा फैसला: ‘मैं मरूंगा नहीं, अमर रहूंगा!’”

भरतपुर के प्रसिद्ध जूडो चैंपियन पोहप सिंह जादौन ने समाज के लिए एक प्रेरणादायक मिसाल पेश की है। उन्होंने स्वैच्छिक देहदान का निर्णय लेकर यह संदेश दिया कि इंसान सिर्फ अपने जीवनकाल में ही नहीं, बल्कि मृत्यु के बाद भी समाज की सेवा कर सकता है। उनके इस फैसले ने यह साबित कर दिया कि असली चैंपियन वही होता है जो दूसरों के लिए जीता और मरने के बाद भी मानवता के लिए कुछ छोड़कर जाता है।
पोहप सिंह जादौन: खेल से परोपकार तक का सफर

भरतपुर के निवासी पोहप सिंह जादौन, जो जयशंकर टाइगर शिक्षक एवं प्रशिक्षण संस्थान, किला भरतपुर के वरिष्ठ जूडो चैंपियन हैं, उन्होंने अपने जीते-जी राजकीय मेडिकल कॉलेज, भरतपुर में स्वैच्छिक देहदान का आवेदन देकर प्रमाण पत्र प्राप्त किया। यह कदम समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल है।
देहदान: समाज और विज्ञान के लिए वरदान
देहदान का सीधा अर्थ यह है कि किसी व्यक्ति द्वारा अपने शरीर को चिकित्सा अध्ययन और शोध के लिए दान कर देना। यह निर्णय मेडिकल छात्रों और वैज्ञानिकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह उन्हें मानव शरीर की गहरी समझ प्रदान करता है।
देहदान से होने वाले प्रमुख लाभ:
- चिकित्सा अनुसंधान को बढ़ावा – मेडिकल छात्रों को शरीर रचना (Anatomy) का वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है।
- नए डॉक्टरों के प्रशिक्षण में मदद – भविष्य के डॉक्टरों को मानव शरीर की संरचना समझने का अवसर मिलता है।
- मानवता की सेवा – मृत्यु के बाद भी समाज के लिए योगदान देने का सबसे महान तरीका।
- सामाजिक जागरूकता बढ़ाना – इससे अन्य लोग भी प्रेरित होकर देहदान के लिए आगे आ सकते हैं।
संस्थान ने किया सम्मान

जयशंकर टाइगर शिक्षक एवं प्रशिक्षण संस्थान की अध्यक्षा प्रतिभा शर्मा, कुंग फू चैंपियन पवन पाराशर, सचिव पीयूष जयशंकर टाइगर, उपाध्यक्ष नेहा शर्मा, कोषाध्यक्ष ओमप्रकाश सैनी, ताइक्वांडो सचिव दीप्ति शर्मा, मनोहर सैनी सहित अन्य पदाधिकारियों ने पोहप सिंह जादौन के इस फैसले की भूरी-भूरी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यह निर्णय समाज के लिए एक अनमोल योगदान है और इससे अन्य लोग भी प्रेरणा लेकर आगे आ सकते हैं।
क्या आप भी बनना चाहेंगे अमर?
अगर आप भी स्वैच्छिक देहदान करना चाहते हैं, तो इसकी प्रक्रिया बेहद सरल है:
- किसी मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेज या संस्था से संपर्क करें।
- आवश्यक फॉर्म भरें और अपने परिवार को इस निर्णय की जानकारी दें।
- संस्थान द्वारा प्रमाण पत्र प्राप्त करें और अपनी अंतिम इच्छा को सुनिश्चित करें।
भरतपुर के टाइगर पोहप सिंह जादौन का यह ऐतिहासिक फैसला न केवल चिकित्सा जगत के लिए वरदान है, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक महत्वपूर्ण कदम भी है। उनकी सोच ‘मैं मरूंगा नहीं, अमर रहूंगा!’ हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो समाज के लिए कुछ कर गुजरना चाहता है।